1.पूजा-पाठ को सिद्ध कैसे किया जाए :-
जिस तरह मंत्रों में शक्ति बताई गई है उसी प्रकार विभिन्न प्रकार की मालाएं भी पूजा-अर्चना
में सिद्धिदायक सिद्ध होती हैं। अभिमंत्रित मालाओं में तो अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति आ जाती
है, जिससे साधक को तुरंत सफलता मिलती है। माला के बिना मंत्र जप का पूर्ण फल नहीं मिल
पाता है। देवी-देवताओं के जप के लिए काम में ली जाने वाली जप मालाओं का इस्तेमाल यदि
तरीके से किया जाए तो नतीजे बेहतरीन मिलते हैं। माला का उचित प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि
भी मिलती है।
कमलगट्टे की माला यह माला लक्ष्मी जी को अत्यंत प्रिय है। लक्ष्मी जी के मंत्रों
का जप करने से शीघ्र सिद्धि मिलती है। यह माला धन प्राप्ति, स्थिर लक्ष्मी के लिए श्रेष्ठ है।
लक्ष्मी मंत्र- ॐ श्री ह्रीं श्री कमले कमलालये प्रसीद श्री ह्रीं श्री ॐ महालक्ष्मै नम:॥
कुश ग्रंथि की माला कुश नामक घास की जड़ को खोदकर उसकी गांठों से बनाई गई यह कुश
ग्रंथि माला सभी प्रकार के कायिक, वाचिक और मानसिक विकारों का शमन करके साधक को
निष्कलुष,निर्मल और सतेज बनाती है। इसके प्रयोग से व्याधियों का नाश होता है।
गणेश मंत्र- ॐ गं गणपत्यै नम:।
मूंगे की माला मूंगे की माला गणेश और लक्ष्मी की साधना में प्रयुक्त होती है। धन-संपत्ति,
द्रव्य और स्वर्ण आदि की प्राप्ति की कामना के लिए की जाने वाली साधना मूंगे की माला को
अत्यधिक प्रभावशाली माना गया है। मंगल ग्रह का जप भी इस माला से किया जाता है। मंगल
मंत्र- ॐ अं अंगारकाय नम:। तुलसी की माला वैष्णव भक्तों तथा राम और कृष्ण की उपासना
के लिए यह माला उत्तम मानी गई है। इस माला को धारण करने वाला पूर्ण शाकाहारी होना
चाहिए। धारक का प्याज व लहसुन से भी पूरी तरह दूर रहने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
कृष्ण मंत्र- ॐ नमोभगवते वासुदेवाय:। ॐ कृष्णं शरणं गच्छामि:॥
स्फटिक माला स्फटिक माला सौम्य प्रभाव से युक्त होती है। इसके धारक को चंद्रमा, शुक्र व
शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इन देवताओं के जातक प्रिय होते हैं।
मानसिक शांति, सात्विक और पुष्टि कार्यों की साधना के लिए यह माला उत्तम मानी जाती
है।
चंद्र मंत्र- ॐ सों सोमाय नम:। शुक्र मंत्र- ॐ शुं शुक्राय नम:।
शंख माला शंख माला विशेष तांत्रिक प्रयोगों में प्रभावशाली रहती है। शिवजी की सााधना और
सात्विक कामनाओं की पूर्ति के लिए इसे धारण करना उत्तम माना जाता है।
शिव मंत्र- ॐ नम: शिवाय:। रुद्र गायत्री- ॐ तत्पुरुषाय विधमहे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र:
प्रचोदयात्:।
वैजयंती माला यह माला भगवान विष्णु की आराधना में प्रयुक्त होती है। श्रीविष्णु को वैजयंती
बहुत प्रिय है। माना जाता है कि इसको धारण करने या जाप करने से भगवान प्रसन्न होते हैं
और सदा आशीर्वाद रखते हैं। वैष्णव भक्त इसे सामान्य रूप में भी धारण कर सकते हैं।
विष्णु मंत्र- ॐ नमो नारायण:
हल्दी की माला हल्दी की यह माला गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए काम में ली
जाती है। गणेश पूजा में प्रयोग लाई जाने वाली इस माला का बृहस्पति ग्रह और देवी
बगलामुखी की साधना में भी प्रयोग किया जाता है। गुरु मंत्र- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौ गु: गुरवे नम:।
पारद माला इसका दूसरा नाम त्रिलोक्य विजय माला है। इसके पहनने से दरिद्रता दूर होती है
तथा शिव व शनि प्रसन्न होते हैं। आकस्मिक धनागमन होने की संभावना बढ़ती है। शरीर के
समस्त रोग स्वत: ही धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। शनि की साढ़ेसाती दोष निवारण में भी यह
राहत प्रदान करती है।
मोती माला यह माला चंद्रमा की तथा आकर्षण व मानसिक शांति के लिए उपयुक्त है। इसे
पहनने से स्त्रियों के सौंदर्य में वृद्धि व शीतलता का अनुभव होता है।
चंद्र मंत्र- ॐ सों सोमाय नम:। चंदन की माला यह दो प्रकार की होती है- सफेद और लाल चंदन
की। सफेद चंदन की माला का प्रयोग शांति पुष्टि कर्मों में तथा राम, विष्णु आदि देवताओं की
उपासना व राहू ग्रह की शांति के लिए जप किया जाता है। जबकि लाल चंदन की माला
गणेशोपासना तथा साधना (दुर्गा, लक्ष्मी, त्रिपुरसुंदरी) आदि की साधना के लिए प्रयुक्त होती
है। लाल चंदन की माला से सूर्य का भी जप किया जाता है। धन- धान्य की प्राप्ति की साधना
में भी इस माला का प्रयोग किया जाता है।
राहू मंत्र- ॐ भ्रां भ्री भ्रौ रां: राहवे नम्:। सूर्य मंत्र- ॐ धृर्णि सूर्य आदित्य श्री ॐ।
रोग विनाशक रुद्राक्ष माला रुद्राक्ष शिव को परम् प्रिय है। वैज्ञानिक तौर पर रुद्राक्ष में चुंबकीय,
विद्युतीय और आकर्षण शक्तियां पाई जाती हैं। इसके स्पर्श एवं उपयोग से अनेक पापों से
छुटकारा मिलता है। इससे दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। रुद्राक्ष के उपयोग से स्नायु
रोग, स्त्री रोग, गले के रोग, रक्तचाप, मिरगी, दमा, नेत्र रोग, सिर दर्द आदि कई बीमारियों से
लाभ होता है। श्रद्धा-भक्ति से धारण किया गया रुद्राक्ष सम्पूर्ण कामनाओं को सिद्ध करता है।
रुद्राक्ष सामान्यत: एक से इक्कीस मुख तक पाए जाते हैं परन्तु पंद्रह से इक्कीस मुख रुद्राक्ष
प्राय: दुर्लभ होते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शंकर का स्वरूप है। यह अत्यंत दुर्लभ है
व कई कार्यों में सफलता देता है।
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