"""""""""""""""श्री नरेश नाथ के पोस्ट से लिया गया है """""""""""""""""
***********आदेश आदेश**************
""""""मंत्र कैसे साधै""""""
** मंत्र तंत्र को कैसे साधा जाये तो कुछ जानकारी जो बहुत उपयोगी है की मंत्र तंत्र को नियम अनुसाशन से
सिध्द किया जावे तो वहाँ जल्द ही सिध्द होते हैं एक बात की मंत्र तंत्र को हम जब साधते हैं पर वह सधते नही
है क्योंकि जब तक हम आपने आपको नहीं साधेंगे तब तक ये मंत्र तंत्र नहीं साधेंगे ।
100 आदमी मंत्र साधते हैं तो सिर्फ 3 या 4 व्यक्ति ही सफल होते हैं जो नियम का पालन करते हैं ।
(१) मंत्र साधने वाले को शुद्ध रहना मदिरा मास झूट दंभ पाखंड और अहंकार इन चीजो से दूर रहना ।
(२) मंत्रो के नियम अनुसाशन भंग ना करे अपने मन के अनुसार ना चले जैसा आपको बताया जाये वैसा ही करे ।
(३) जिस किसी मंत्र को आप साध रहे हो उस मंत्र पे अटल विशवास रखे।।
(४) मंत्र के जप के समय का ध्यान रखे ।
एसे कई नियम है जिसे आप भलीभाती जानते हो बस उनका गंभीरता से पालन करे ।।
मंत्र और तंत्र को सिध्द करने में सहायक जो शक्ति हैं वो ये हैं
* भैरव
*दुर्गा
* हनुमान
* कुल देवता ईष्ट देवता ईष्ट देवी
* और मंत्र के देवता
और जो सबसे बड़ी सहायक शक्ति हैं वो सिर्फ ईष्ट शक्ति होती हैं ईष्ट कृपा कैसे पाई जाये वह भी आपको
बता दी जायेगी उससे पहले एक मुख्य बात की
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः | गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते |भगवान शिवजी कहते हैं - "गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है गुरु से अधिक और कुछ नहीं है
१. यदि हमने अध्यात्मशास्त्र का अभ्यास नहीं किया होता है |
२. यदि हमें सूक्ष्म का ज्ञान नहीं होता |
३. यदि हम भौतिक जगत की वस्तु प्राप्त करने के लिए गुरु ढूंढते हैं |
४. जब स्वयं की साधना का ठोस आधार नहीं होता|
५. जब हम अपनी जीवन की समस्याओं से पीछा छुडाने के हेतु भगोड़ेपन की वृत्ति रख अध्यात्म का आधार
लेना चाहते हैं |
६. जब हमें गुरु-शास्त्र पर पूर्णश्रद्धा नहीं होती |
७. जैसा शिष्य होता हो, वैसे ही गुरु मिलते हैं, अतःउच्च कोटिके गुरु चाहिए तो अपनी पात्रता बढायें |
८. जब कोई भीड़ देख कर गुरु धारण करने जाते हैं | वास्तविकता यह है कि गुरु को हम धारण नहीं करते,
अपितु गुरु हमें शिष्य के रूप में स्वीकार करते हैं | यही कुछ ऐसी बाते हैं जिसे आपको आपने जीवन में गहराई
से उतारनी हैं गुरु ही सर्वोपरी हैं गुरु ही शिव हैं गुरु ही ज्ञान हैं आप जिस मंत्रो को जपते हो उसके रचियता भी
गुरु के आधीन ही हैं ।
अगर हम सोचे की गुरु बिन हम साधना में सफलता पा लेंगे तो यहाँ आपका भरम हैं क्योकि चारो युग में
जितने भी भगवान ने अवतार लीये हैं उन्होने सर्वप्रथम गुरु की शरण और सानिध्य लिया है।।
तो इस सनातन परम्परा को हमें भी निभाना चाहिए इसलिये गुरु अवशयक हैं ।
"""""""""""""""नरेश नाथ"""""""""""""""""
No comments:
Post a Comment