1 September 2015

साबर मंत्रो को जगाने की विधि

साबर मंत्रो को जगाने की विधि ~


द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की


 प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया एक दिन भगवान् शिव एक 


शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर

 बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर 


मारा , दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से 


कहा , मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया

 जायेगा अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ , युद्ध देखने के लिए

 माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी


 तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही


 शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में

 गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप


 दिखाया !



अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पाशुपत अस्त्र के लिए 

प्रार्थना की शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया , उसी समय माँ पार्वती ने 

भी अपना असली स्वरुप दिखाया जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था 

तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य 

शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही

 भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया माता ने वही

 भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई 

तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों मैं प्रसन्न

 हूँ , वर मांगो ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण 

नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े

 विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की

 भक्ति करने की इच्छा है , इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव

 से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर

 सके I



माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर 

आदिनाथ भगवान् शिव ने साबर मन्त्रों की रचना की यहाँ एक बात

 बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान् शिव कोआदिनाथ

 ” कहा जाता है और माता पार्वती को उदयनाथ कहा जाता है भगवान्

 शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा

 गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली , उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार

 किया और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की उनके बाद गुरु गोरखनाथ

 जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के 

माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ कहा जाता है कि योगी 

कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही 

चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की मान्यता है कि योगी 

जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की इन योगीयो के 

बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की यह साबर 

विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी , इसलिए 

साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना

 किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है अतः यह कहना गलत ना होगा

 कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है I


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